Kahika Fair (Mela) of District Kullu HP
काहिका कुल्लू में मनाया जाने वाला विशेष मेला है। इसे प्रायश्चित यज्ञ भी कहा जाता है। इस मेला में नौड़ की विशेष भूमिका होती है जो मेला में पहले मरता है फिर देव कृपा से पुनः जीवित हो जाता है। यह मेला कहीं तीसरे, कहीं पांचवें तथा कहीं सातवें वर्ष मनाया जाता है। कई स्थानों मदिर निर्माण या मोहरे निर्माण या देव आज्ञा पर मनाया जाता है।
कुल्लू में यह मेला तारापुर, मथान, लराकेलो, दयार, भोखली, शिरढ़, दरपोइन, छमाहण, निरोगी, बशैणा हवाई आदि गांव में मनाया जाता है। काहिका में देवदार के छोटे वृक्षों से वेदी बनाई जाती है। जिसके बीच नौड़ बैठता है। गूर देऊ खेल भी इसी स्थान पर करता है और नौड़ के चारों ओर चक्कर लगाता है।
बेदी में औखली के रूप में एक पात्र होता है। जिसमें जौ डालते हैं। नौड़ बेदी के चारों ओर जौ फेंकता है जिसके ऊपर जौ गिरते हैं वह पवित्र हुआ समझा जाता है। बच्चों के जादू टोनों के बचाव के लिए मातायें जौ लेती हैं। यहां सभी गुनाहों का प्रायश्चित भी किया जाता है। जिसे छिद्रा कहते हैं। शिरढ़ काहिका वास्तव में ही प्रायश्चित का मेला है।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार एक नाग साधू के रूप में शिरढ़ आ रहा था कि उसे रास्ते में साथी के रूप में नौड़ मिल गया। दोनों खाने का प्रबंध करने लगे। साधू के रूप में नाग स्थानीय ठाकुर के पास आटा मांगने के लिये गया और नौड़ को नमक इत्यादि पीसने के कार्य में लगा गया।
ठाकुरों ने उसे आटा नहीं दिया और उसका अपमान किया जिससे साधू उपर हिमरी की ओर गया। वहाँ पर वह वर्षा से भारी बाढ़ लाया जो ठाकुर के विनाश का कारण बनी। परन्तु जब वापिस आया तो देखा नौड़ भूख से मर गया है। देवता ने अपने आप को इस मृत्यु के लिये अपराधी माना और प्रायश्चित यज्ञ काहिका के रूप में किया।
हर काहिका में नौड़ की मृत्यु की पुनरावृति की जाती है और देवता इस प्रकार की घटना का वर्णन करता है। नौड़ मारने की क्रियायें हर स्थान में अलग-अलग हैं। शिरढ़ तथा दरपोईन में तीर चलाया जाता है। भोखली में मंत्र से मारा जाता है।
बशौणा, दयार, हवाई में चरणामृत पिलाकर नौड़ मारा जाता है। नौड़ मरने की कई चुपके से सुई चुभो कर या चुटकी काट कर परीक्षा लेते हैं। परन्तु नौड़ की मृत्यु को पूर्ण मानते हैं। अव विशेष प्रकार का बाजा बजाया जाता है जिसकी धुन पर बाजा बजाने वाले और नौड़ को कन्या देने वाले गुर तथा पुजारी विशेष नृत्य करते हुये मन्दिर की परिक्रमा करते हैं। देवता का कई बार जयघोष किया जाता है। तीसरी परिक्रमा में नौड़ जी उठता है। जिसे देवी चमत्कार माना जाता है।
यदि नौड़ जिन्दा न हो तो उसकी विधवा को यह हक है कि वह देवता पर लगा सारा सोना, चांदी लूट ले। नौड़ का जिन्दान होना देव शक्ति का हास माना जाता है। ऐसे मेलों के कारण लोगों की देवता के प्रति आस्था प्रगाढ़ होती है। जनश्रुति अनुसार एक बार आदि ब्रह्मा खोखन के रोह लगी काहिका में नौड़ की मौत हो गई। गहने और धातु नौड़ की पत्नी ले गई और देवरथ नौड़ के साथ जला दिया गया था।
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