History of Lahaul-Spiti – Himachal Pradesh | लाहौल-स्पीति का इतिहास
लाहौल स्पीति हिमाचल प्रदेश का एक अद्भुत भू-भाग है। लाहौल और स्पीति जिले की दो इकाइयों में अलग-अलग ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। मनु को इस क्षेत्र का प्राचीन शासक बताया है। यहाँ पर विदेशी आक्रमणकारी भी आये थे और कुछ सालों तक शासन किया। जांस्कर क्षेत्र में कनिष्क का स्तूप भी प्राप्त हुआ। 17 वीं शताब्दी में लाहौल कुल्लू के राजा के हाथों में आ गया। 1840 ई. में लाहौल सिक्खों के कब्जे में आया। 1846 ई. में अंग्रेजों के अधीन आ गया।
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लाहौल और स्पीति का नामकरण :
अधिकतर विद्वानों का मत है की लाहौल शब्द ‘लाहा-यूल’ से बना है जिसका अर्थ देव भूमि है। लद्दाख के लोग इसे ‘लाहो-यूल’ पुकारते थे जिसका अर्थ दक्षिण प्रदेश है। तिब्बत निवासी इसे ‘गारजा’ कहते थे जिस का अर्थ ‘अज्ञात देश हैं। इसे स्वांगला भी कहा जाता है। राहुल सांकृत्यायन ने लाहौल को ‘देवताओं की भूमि कहा है। तिनान ,पुनान और टोड भाषाओं में लाहौल को गारजा और मनछद भाषा में लाहौल को स्वांगला कहा जाता है।
स्पीति -स्पीति का शाब्दिक अर्थ है “मणियों की भूमि”
पुरातत्व :
- 11 वीं और 12 वीं शताब्दी की मूर्तियां गुंगरांग और जोलिंग में पाई गई।
- धातु की मूर्तियां।
- पट्टन घाटी में बहुत जगहों में चश्मों के करीब उनके पाषाण-पट्टिकाओं पर लेख उत्कीर्ण है।
- फ्रांके ने चट्टानों पर 23 छोटे-छोटे अभिलेख देखे जिनमे पुराने राजाओं-रानियों के नाम हैं।
लाहौल-स्पीति का प्राचीन इतिहास :
इतिहास के आरंभिक काल में लाहौल छोटे -छोटे गढ़ों या खण्डों एवं सामंतीय क्षेत्रों में बंटा हुआ था जिसके शासक लाहौल में ‘जो’ कहलाते थे। ये सामंत वैसे ही होते थे , जैसे हिमाचल प्रदेश के दूसरे भागों में राणा अथवा ठाकुर होते थे। लाहौल के सामंत कभी लद्दाख ,कभी कुल्लू और कभी चम्बा को राजकर देते रहे।
लाहौल का उल्लेख सबसे पहले हमें चीनी यात्री ह्वेनत्सांग की यात्रावली से मिलता है। ह्वेनत्सांग 630-643 ई तक भारत में रहा। 635 ई. में वह जालंधर में था और वहाँ से वह कुल्लू गया।
इस क्षेत्र में यह मान्यता है कि एक बार उत्तर की ओर से किरा जाति के लोगों ने लाहौल पर आक्रमण करके दस वर्ष तक अपना अधिकार जमाए रखा। ये आक्रमणकारी यारकंद की ओर से आये थे। यहां तक कि इन लोगों ने काँगड़ा के बैजनाथ पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित किया। हो सकता है इन लोगों ने बैजनाथ का नाम कीरग्राम रखा हो।
लाहौल स्पीति का मध्यकालीन इतिहास :
900 ई. के लगभग तिब्बत स्कीद-लद-निमाम गौन ने लाहौल को अपने अधिकार में कर लिया। उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र दत्तसुकगोन का स्पीति और लाहौल पर अधिकार हुआ। बाद में कुल्लू और चम्बा ने लाहौल से तिब्बतियों को खदेड़ दिया और वहां के शासक ‘जौ’ को अपने अधीन कर लिया।
स्कीद-लद-निमाम गौन के वंश की 6 पीढियों बाद लहा देन उतपाल (1080-1110) ने कुल्लू पर आक्रमण किया और वहां के राजा सिकंदर पाल को राजकर देने पर बाध्य किया।
जब तिब्बती शासकों की शक्ति कमजोर हो गई तो कुल्लू के राजा बहादुर सिंह (1532-59 ) ने लाहौल को उनसे वापिस लेकर अपने अधिकार में कर लिया। बहादुर के बाद तीन -चार राजाओं के अभिलेख लाहौल में कई स्थानों पर मिलते हैं।
चम्बा के राजाओं ने भी लाहौल के अधिकतर भाग पर आक्रमण किया था। उदयपुर का मृकुला देवी मंदिर चम्बा के राजा प्रताप सिंह वर्मन द्वारा बनवाया गया था।
कुल्लू के राजा जगत सिंह (1637-1672 ई) के समय लाहौल कुल्लू का भाग था। 1681 ई. में मध्य तिब्बत की ओर से आए मंगोलो ने लद्दाख पर पर आक्रमण किया और उन्ही की एक सैनिक टुकड़ी ने लाहौल में प्रवेश किया और केलांग किले पर आक्रमण किया।
राजा विधि सिंह ने लगभग 1672 ई. में लाहौल के ऊपरी क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया। इसी अंतराल में कुछ भाग चम्बा से भी उसने ले लिया। विधि सिंह के समय से थिरोट कुल्लू और चम्बा के बीच सीमा का निर्धारण करता था। विधि सिंह ने लाहौल के सभी “जौ” को जागीर प्रदान की और उन्हें ठाकुरों की उपाधि दी।
कुल्लू के राजा मान सिंह (1690 -1720 ई.) ने सन 1700 में लाहौल की सीमा को उतर में लिंगति तक बढ़ाया और लद्दाख के साथ वहाँ पर सीमांकन कर दिया। उन्होंने गोंदला किला बनवाया।
लाहौल स्पीति का आधुनिक इतिहास :
गेमूर गोम्पा में कुल्लू के राजा विक्रम सिंह (1806-1816 ई.) का नाम एक शिलालेख में मिला है। विलियम मूरक्राफ्ट की 1820 ई. में लाहौल यात्रा विवरण भी यहाँ पर दर्ज है। मूरक्राफ्ट के अनुसार लाहौल तब लद्दाख के अधीन था। लाहौल की राजधानी उस समय टांडी थी।
1840 ई. में लाहौल सिखों के कब्जे में आ गया था। कनिंघम ने 1839 ई. में लाहौल की यात्रा की। सिखों के सेनापति जोरावर सिंह ने 1834-35 ई. में लद्दाख /जास्कर और स्पीति पर आक्रमण किया।
1846 ई. में जब सिखों की हार अंग्रेजों के हाथों हुई तो कुल्लू अंग्रेजों के अधिपत्य में आ गया और साथ ही लाहौल भी अंग्रेजी साम्राज्य का एक भाग बना और प्रशासनिक सुविधा के लिए कुल्लू के ही साथ जोड़ दिया गया।
सन 1846 ई. में पंजाब का पहाड़ी क्षेत्र रावी से लेकर सिंधु घाटी तक और लद्दाख तथा स्पीति , जम्मू के गुलाब सिंह को दिया गया। परन्तु कुछ समय के पश्चात् स्पीति को गुलाब सिंह सिंह से वापिस लेकर उसे कुल्लू के साथ जोड़ दिया गया और कुल्लू , लाहौल तथा स्पीति को मिलाकर एक डिवीज़न बनाया गया।
चम्बा लाहौल और ब्रिटिश लाहौल का विलय 1975 ई. में हुआ।
अंग्रेजों ने बलिराम को लाहौल का पहला नेगी बनाया।
1857 ई. के विद्रोह के समय स्पीति के ‘नोनो वजीर’ ने अंग्रेजों की मदद की थी। प्रथम विश्व युद्ध के समय अंग्रेजों ने लाहौल के वजीर अमीर चंद को ‘रायबहादुर की उपाधि प्रदान की।
1941 ई. को लाहौल स्पीति उप तहसील बनी और उसका मुख्यालय केलांग बनाया गया। पंजाब सरकार ने लाहौल स्पीति को 1960 में जिला बनाया। वर्ष 1966 ई. में लाहौल स्पीति का विलय हिमाचल प्रदेश में हो गया।
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