History of District Kinnaur HP | जिला किन्नौर का इतिहास
किन्नौर जिला 1960 से पहले महासू जिले का एक भाग था। सन 1960 ई. को महासू जिले की चीनी तहसील महासू से अलग हुई और किन्नौर नाम से हिमाचल प्रदेश का छठा जिला बना। चीनी तहसील (किन्नौर) रामपुर बुशैहर रियासत का ही एक भाग था। एक अभिलेख से पता चलता है कि प्राचीन काल में मथुरा के देवता देव पूरन किन्नौर के कामरु में आये थे। उसने राणा और ठाकुरों को मारा और सराहन पहुँच कर राजा बाणासुर को मारा। उसने बनारस से चंद्रवंशी राजा प्रदुमन को लाया और कामरु में राजा बनाया।
- प्राचीन संस्कृत ग्रंथों -पुराण ,रामायण, महाभारत आदि में यह क्षेत्र ‘किन्नर खण्ड’ या किन्नर देश’ के नाम से विख्यात था प्राचीन काल में किन्नर खण्ड पूर्व में गंगा -यमुना के उदगम तक और पश्चिम में चंद्रभागा नदियों के स्त्रोत तक फैला हुआ था।
- किन्नौर की नगरी ‘कामरु’ बुशैहर की प्राचीन राजधानी थी।
- एक दूसरे अभिलेख के अनुसार बुशैहर रियासत की स्थापना भगवान कृष्ण के पुत्र प्रधुमन ने की थी। वह बाणासुर की पुत्री से विवाह करने आया था।
- किन्नौर जिले से तिब्बत की सीमा लगती है। तिब्बती लोग किन्नौर को खुनू कहते हैं।
- किन्नर का अर्थ : हिन्दू धर्म ग्रन्थ में किन्नर लोगों को अश्वमुखी और किम +नर: (किस प्रकार का नर) कहा गया है।
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बुशैहर रियासत के राजा
रियासत बुशैहर वंश की उपलब्ध वंशावलियों में दो वंशावलियाँ प्रमुख हैं। एक वंशावली किन्नौर -बुशहर की प्राचीन राजधानी ‘कामरु’ (किन्नौर का मोने) में है और दूसरी ‘रामपुर’ में। कामरु की वंशावली के अनुसार वंश के संस्थापक प्रदुमन से लेकर राजा पदमसिंह तक के नाम मिलते हैं। एक सौ तेईसवीं पीढ़ी राजा वीरभद्र सिंह की है।
बुशैहर का उल्लेख कुल्लू के इतिहास में भी आता है। कुल्लू के राजा दतेश्वर पाल (सातवीं शताब्दी के अंत में ) के समय चम्बा की सेनाओं ने लाहौल की ओर से आगे बढ़कर कुल्लू पर आक्रमण किया। उस समय चम्बा का राजा मेरु वर्मन था। रोहतांग के पास युद्ध हुआ जिसमे राजा मारा गया। उसके पश्चात् उसके पुत्र अमर पाल भी युद्ध में मारा गया और उसका दूसरा पुत्र सतपाल या शीतल पाल ने भागकर बुशहर में शरण ली इसके बाद पांचवी पीढ़ी तक बुशहर में ही रहे।
चतर सिंह :
बुशहर के राजाओं में चतर सिंह एक योग्य शासक था। वह पहला राजा था जिसने सारे बुशहर-किन्नौर को अपने अधीन करके एक सूत्र में बांधा। कामरु वंशावली के अनुसार वह प्रदुमन से एक सौ दसवां राजा था।
केहरी सिंह :
केहरी सिंह बुशहर के राजाओं में सबसे प्रसिद्ध राजा था। उसके शौर्य सबंधित कथाएं आज भी बुशहर में प्रचलित हैं। मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने केहरी सिंह दिल्ली में अपने दरबार में बुलाया था। उन्होंने केहरी सिंह को ‘छत्रपति का ख़िताब’ दिया गया।
राजा केहरी सिंह ‘अजानवाहु’ थे अर्थात जब वे खड़े होते थे तो उनकी भुजाएं घुटनों को छूती थी। राजा केहरी सिंह ने सतलुज के किनारे “लवी मेला” का आरम्भ किया।
विजय सिंह
केहरी सिंह के बाद विजय सिंह गद्दी पर बैठा। उसने सन 1704 ई. में कुमारसेन ,कोटगढ़ ,सागरी और सारी के छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर अपने अधीन किया।
राजा राम सिंह :
राम सिंह ने सराहन को छोड़ कर रामपुर को अपनी स्थाई राजधानी बनाया। राजा रामसिंह के समय कुल्लू के राजा बिधि सिंह ने बुशहर रियासत पर आक्रमण किया तथा बाहरी सिराज के ‘धावल’ कोटखंडी’ व बलरामगढ पर अधिकार कर लिया , बाहरी सिराज का यह क्षेत्र आज भी कुल्लू जिले का भाग है।
राजा उग्र सिंह :
उग्र सिंह का समय मध्य तथा पश्चिम हिमालय के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण काल रहा। राजा उग्र सिंह की दो रानियां थी एक सिरमौर से तथा दूसरी ‘धामी’ के ठाकुर की एक रिश्तेदार।
राजा महेंद्र सिंह :
सन 1810 ई. में राजा उग्र सिंह की मृत्यु हो गई। राजकुमार महेंद्र उस समय पांच वर्ष का था। 1811 ई. में अमर सिंह थापा ने भारी सेना लेकर बुशहर की राजधानी रामपुर पर अधिकार कर लिया। बुशैहर के वजीर नाबालिग राजा और राजमाता को ऊपर किन्नौर के गांव ‘चड़गांव’ ले गए। अमर सिंह थापा रामपुर में 1813 ई. तक रहा। बुशहर पर गोरखों का प्रभुत्व 1810 -11 से लेकर 1815 तक रहा। 1850 में राजा महेंद्र सिंह की मृत्यु हो गई।
शमशेर सिंह
जब शमशेर सिंह 11 वर्ष की आयु में बुशहर की गद्दी पर बैठा। मनखुदास वजीर अविभावक के तौर पर शासन का कार्य चलाता रहा। किन्नौर के पवारी परिवार के प्रमुख व्यक्ति रण बहादुर सिंह पुरे किन्नौर क्षेत्र में विख्यात था। उसने तत्कालीन बुशहर शासक टिक्का रघुनाथ सिंह से ‘डोडरा कवार क्षेत्र की स्वायत्ता की मांग की थी, राजा ने अस्वीकार कर दी थी।
1857 की क्रांति के समय राजा 18 वर्ष का हो पाया था। राजा ने इस क्रांति में अंग्रेजों की सहायता नहीं की। 1859 ई. में बुशहर में दुम्ह आंदोलन हुआ। राजा शमशेर सिंह का शासन संतोषजनक नहीं था।
टिक्का रघुनाथ सिंह :
1886 ई. में टीक्का रघुनाथ सिंह को प्रशासनिक कार्य उसे सौंप दिया था। जिसे उसने 1898 तक बड़ी कुशलता से चलाया। इसके लिए भारत सरकार ने उसे सी.आई.ई. की उपाधि से सम्मानित भी किया।
1887 -89 ई. में उसने मियां दुर्गा सिंह की सहायता से बुशहर का भूमि बंदोबस्त पूर्ण रूप से करवाया। टिक्का रघुनाथ सिंह की मृत्यु 1898 ई. में मृत्यु हो गई। सरकार द्वारा राय साहब मंगत राम को वजीर और फिर मैनेजर नियुक्त किया। वह इस पद पर 1911 ई. तक रहा।
पदम् सिंह :
13 नवम्बर 1914 को पदम् सिंह को उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया सन 1914 से लेकर 1917 तक एलन मिचल से ट्रेनिंग प्राप्त करने के पश्चात 1917 में राजा को प्रशासन के पूर्ण अधिकार दे दिए गए।
राजा पदम सिंह ने 9 शादियां की थी इनमें से चार कोटखाई से , एक मंडी ,एक सुकेत ,एक सांगरी ,आठवीं रानी ज्वाली देई लम्बाग्रां (काँगड़ा के कटोच वंशीय ) तथा नवमीं रानी शांता देवी डाडी के ठाकुर के बेटी थी। वर्ष 1939 से लेकर 1946 तक बुशहर में कई प्रकार के प्रशासनिक सुधार हुए। मास्टर अन्नूलाल, सत्यदेव बुशहरी जैसे आंदोलनकारी के प्रयासों से राजा पद्म सिंह ने रामपुर बुशहर का भारत में विलय स्वीकार कर लिया। 1948 में बुशहर रियासत का हिमाचल में विलय हो गया।
राजा पदम सिंह के दो पुत्र हुए। जिसमे एक राजा वीरभद्र सिंह और दूसरे राजकुमार देवेंद्र सिंह।
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