Dhami Goli Kand : Himachal Pradesh

Dhami Goli Kand : Himachal Pradesh | धामी गोली कांड

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धामी गोली कांड की पृष्ठभूमि :

रियासत (धामी) के लोगों ने अपनी रियासत में सुधार लाने के उद्देश्य से 1937 ई. में एक “प्रेम प्रचारिणी सभा” गठन किया । बाबा नारायण दास को इसका अध्यक्ष और पं. सीता राम को मंत्री बनाया गया। इसी दौरान धामी रियासत की “प्रेम प्रचारिणी सभा” ने सरकार के दमन से बचने के लिए रियासती प्रजा मण्डल शिमला में शामिल होने की योजना बनाई।

इसी उद्देश्य को लेकर 13 जुलाई, 1939 ई. को भागमल सौहटा की अध्यक्षता में शिमला के निकट कुसुम्पटी के पास कैमली स्थान पर शिमला की पहाड़ी रियासतों के प्रजा मण्डलों की एक बैठक हुई। इस बैठक में धामी रियासत की “प्रेम प्रचारिणी सभा” को “धामी प्रजा मण्डल” में बदल गया।

धामी प्रजामण्डल की प्रमुख मांगे Dhami Goli Kand : Himachal Pradesh

रियासत (धामी) के पण्डित सीता राम को प्रधान नियुक्त किया गया। इस अवसर पर धामी प्रजा मण्डल की ओर से एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें राणा धामी से निम्नलिखित माँगें की गई :-

  • धामी प्रजा मण्डल को मान्यता प्रदान की जाए।
  • बेगार प्रथा को समाप्त किया जाए।
  • भूमि – लगान में उचित कमी की जाए।
  • लोगों को नागरिक अधिकारों की स्वतन्त्रता प्रदान की जाए।
  • राज्य की जनता पर लगाए गए प्रतिबन्ध और अवरोधों को समाप्त किया जाए।
  • धामी में एक प्रतिनिधि उत्तरदायी सरकार का गठन किया जाए और उसमें जनता के प्रतिनिधियों को प्रशासकीय कार्यों में नियुक्त किया जाए।

इस प्रस्ताव में व्यक्त किया गया कि यदि रियासत के शासक की ओर से उनके माँग पत्र पर शीघ्र कोई उत्तर नहीं मिला तो 16 जुलाई को सात व्यक्तियों का एक शिष्टमण्डल हलोग आकर राणा से मिलेगा। मंशा राम को विशेष प्रतिनिधि बनाकर यह माँग पत्र राणा के पास धामी भेजा गया।

राणा द्वारा मांगे अस्वीकार :

राणा ने इस पत्र को अपना अपमान समझा। उसने प्रजा मण्डल की मॉँर्गे स्वीकार नहीं की और प्रस्ताव का उत्तर नहीं दिया। उत्तर न पाने पर यह तय किया गया कि पूर्व निर्धारित तिथि 16 जुलाई को भागमल सौहटा शिमला से धामी के लिए प्रस्थान करेंगे और धामी की राजधानी हलोग से लगभग डेढ़ मील दूर खेल के मैदान में उनके स्वागत में लोग इकट्ठे होंगे। वहीं शेष छः प्रतिनिधि हीरा सिंह पाल, मंशा राम चौहान, पं. सीता राम, बाबू नारायण दास, भगत राम और गौरी सिंह उनके साथ मिलेंगे। वहाँ से वे राणा दलीप सिंह राणा से मिलेंगे।

शिष्टमंडल का अपमान :

16 जुलाई, 1939 ई. को हिमालय रियासती प्रजामण्डल, शिमला तथा धामी प्रजामण्डल के सदस्यों का एक शिष्टमण्डल भागमल सौहटा के नेतृत्व में राणा से मिलने राजधानी ‘हलोग’ गया। इस शिष्टमण्डल में सर्वश्री भागमल सौहटा, हीरासिंह पाल, मनशा राम चौहान, पंडित सीता राम, बाबू नारायण दास, भगतराम, और गौरी सिंह सम्मिलित थे। जब शिष्ट मण्डल घणाहट्टी पहुँचा तो रियासत की पुलिस ने भागमल सौहटा को अपनी हिरासत में ले लिया और कौमी झण्डा छुड़ा कर जला दिया।

इस पर शिष्ट मण्डल के सदस्यों ने नारे लगाने आरम्भ किये जिससे लोगों में जोश फैल गया। ‘महात्मा गांधी जिन्दाबाद’ और ‘कांग्रेस जिन्दाबाद ‘के नारे लगाते हुए शिष्टमण्डल के सदस्य आगे बढ़ते रहे। रास्ते में और भी लोग इनके साथ मिलते गए और शिष्टमण्डल भारी जुलूस में बदल गया।

राणा द्वारा जुलुस पर गोली चलाने के आदेश :

रियासत धामी की राजधानी हलोग पहुँचने तक लगभग 1000-1500 लोग जुलूस में शामिल हो चुके थे। वहां पर पुलिस भागमल सौहटा को थाने की ओर ले गई । साथ में मंशा राम चौहान और धर्मदास भी थाने की ओर चले गए जब उत्तेजित जुलूस आगे बढ़ने लगा तो राणा के वफादार सेवकों और पुलिस ने शान्तिपूर्ण जुलूस पर पत्थर बरसाए और गोलियां चलानी शुरू कर दी। डण्डों और लाठियों से पीट कर लोगों को तितर-बितर किया गया। निहत्थे लोगों के शान्तिपूर्ण जुलस पर इस अचानक आक्रमण में गांव मन्देआ के दुर्गादास और गांव टंगोश के उमादत्त घटनास्थल पर ही गोली लगने से शहीद हो गए। लगभग 80-90 व्यक्ति घायल हुए। कालान्तर में घायलों में से वषमाणा गांव के रूप राम, कालवी के तुलसी राम और चैंईयां के नारायण दास अपंग हो गए थे।

लोगों द्वारा धामी को छोड़ना :

रियासती सरकार के आतंक से घबरा कर लगभग 200 धामी निवासी शिमला की ओर भागे और गंज बाजार में तीन महीने शरणार्थी बन कर रहे । धामी रियासत की इस दर्दनाक घटना से शिमला में हलचल मच गई और रोष की लहर दौड़ गई । ब्रिटिश सरकार ने घबरा कर धारा 144 लागू कर दी औरशहिर में कर्फ्यू लगा दिया गया।

जाँच समिति का गठन :

शिमला में ‘ धामी गोली काण्ड ‘की जांच के लिए अखिल भारतीय काग्रेस कमेटी के सदस्य लाला दुनीचंद अम्बालवी की अध्यक्षता में एक गैर-सरकारी जांच समिति गठित की गई। इस समिति में टिहरी के देव समन, शिमला कांग्रेस कमेटी के प्रधान श्याम लाल खन्ना, कांग्रेस कार्यकर्त्ता लाला किशोरी लाल और सिरमौर के पंडित राजेन्द्र दत्त शामिल थे। जांच के दौरान उसने बताया कि राणा ने उससे 100 पुलिस जवान मांगे परन्तु उसने इन्कार कर दिया और राणा के भेजे आदमियों को राजा क्योंथल के पास जुन्गा भेजा था। यह पता लगने पर उक्त समिति ने तुरंत क्योंथल निवासी देवी राम। केवला को जुन्गा भेजा।

देवीराम केवला ने राजा से पुलिस दल धामी न भेजने का आग्रह किया। जब धामी के राणा के वफादार सेवक वहां पहुंचे तो क्योंथल के राजा हेमेन्द्र सेन ने उनसे कहा, “मेरे पास अपनी प्रजा को मारने के लिए आदमी नहीं हैं। यदि मेरी प्रजा इस तरह मेरे पास आए तो मैं उनसे कहूंगा कि मैं तो एक कम्बल- वह भी यदि आप लोग कहें तो- लेकर चला जाऊंगा बाकी काम-काज आपका है।” राजा हेमेन्द्र सेन ने उसी दिन से अपनी रियासत में बेगार प्रथा बन्द कर दी और भूमि लगान भी कम कर दिया।

Dhami Goli Kand kab hua ?

16 July 1939.

धामी गोली काण्ड कब हुआ ?

16 जुलाई, 1939

Dhami Goli Kand : Himachal Pradesh

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