Beas River And It’s Tributaries | व्यास नदी और इसकी सहायक नदियाँ
हिमाचल प्रदेश मुख्यत: पांच नदियों का प्रदेश है। ये नदियाँ है- सतलुज, चेनाब, रावी, व्यास, यमुना। व्यास नदी प्रदेश में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। व्यास नदी का हिमाचल प्रदेश की आर्थिक में बहुत बड़ा योगदान है। इस नदी पर अनेक जल विद्युत परियोजनाएं बनाई गई है तथा नदी के जल का प्रयोग सिंचाई के लिए भी किया जाता है।
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व्यास नदी का उद्गम और प्रवाह
व्यास नदी पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला से रोहतांग के समीप व्यास कुंड (3978 मीटर) से निकलती है। व्यास नदी के दो स्त्रोत है – व्यास रिखी और व्यास कुंड। मनाली लेह मार्ग पर चलते हुए रोहतांग पर्वत शिखर पर सड़क के दाएं किनारे एक बड़ी चट्टान है उसके साथ ही पानी का चश्मा है जहां से पानी की बारीक धारा नीचे को बहती है। यही व्यास नदी का मूल स्रोत है जिसे “ब्यास रिखी” कहते हैं। व्यास रिखी और व्यास कुण्ड के बीच, परन्तु दोनों से अधिक ऊंचाई पर इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण सरोवर दुशाहर स्थित है। दुशाहर सरोवर से आता राहणी नाला व्यास नदी का पहला सहायक नाला है। सोलंग नाला ब्यास नदी में मिलता है सोलंग नाला का स्त्रोत व्यास कुंड है। कुल्लू जिला में अनेक सहायक नदियां जैसे तीर्थन, पार्वती, सैंज आदि व्यास में मिलती है। बजौरा के पास व्यास नदी कुल्लू जिला को छोड़कर जिला मंडी में प्रवेश करती है। जिला मंडी में भी अनेक छोटी बड़ी नदियाँ/खड्डे व्यास नदी में मिलती है और संधोल के पास व्यास नदी मंडी को छोड़कर काँगड़ा जिले में प्रवेश करती है। काँगड़ा और हमीरपुर की कई नदियों/खड्डों को अपने मे समाहित करती हुई आगे बढ़ती जाती है। मिरथल के पास व्यास नदी हिमाचल को छोड़ कर पंजाब में प्रवेश करती है।
ब्यास नदी के प्राचीन नाम :
वैदिक काल तक व्यास नदी का नाम अरजकिया/अर्जिकी था। अर्जीकी से ही आज व्यास नदी के ऊपरी भाग को उझी और यहां के रहने वाले लोगों को “झेचा” कहा जाता है। झेचा क्षेत्र से कुछ ही नीचे ब्यास के बाएं किनारे गर्म पानी का पवित्र तीर्थ स्थान वशिष्ठ जहां हर रोज सैकड़ों लोग गंधक युक्त गर्म पानी के स्नान का आनंद लेते हैं। व्यास नदी का संस्कृत नाम “बिपाशा” है।
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व्यास नदी की लंबाई :
व्यास नदी की कुल लंबाई 460 किलोमीटर है। परंतु हिमाचल में इसकी लंबाई 256 किलोमीटर है।
प्रवेश स्थान :
व्यास नदी बजौरा से मंडी में प्रवेश करती है। व्यास नदी मंडी से निकलने के बाद संधोल के आस पास जिला काँगड़ा में प्रवेश करती है। हरसीपतन से नदी हमीरपुर की ओर प्रवाहित होती है। फिर काँगड़ा से व्यास नदी ‘मिरथल’ नामक स्थान पर पंजाब में प्रवेश करती है।
व्यास नदी की सहायक नदियां :
व्यास नदी में अनेक छोटे बड़े नाले/खड्डे तथा नदियाँ मिलती है जिनका वर्णन यहां किया गया है :
कुल्लू जिले में व्यास की सहायक नदियाँ :
कुल्लू जिले में पार्वती, पिन, मलाणा नाला, सोलंग, मनालसु, फोजल और सरवरी, तीर्थन, पतलीकूहल इसकी सहायक नदियां/खड्डे हैं।
पार्वती नदी : व्यास के सहायक नदी नालों में पर्वती सबसे बड़ी नदी है। इसके किनारों पर जरी, कसोल, मणिकरण, खीरगंगा आदि धार्मिक सांस्कृतिक ऐतिहासिक स्थल स्थित है। पार्वती नदी का स्रोत मानतलाई झील है। ‘डीबी रा नाला’ और ‘तोश नाला’ इसके सहायक नाले हैं। शमशी नामक स्थान पर पार्वती नदी व्यास में मिलती है।
सैंज नदी : सैंज नदी लारजी के पास व्यास नदी में मिलती है। यह नदी स्पिति घाटी के सुपाकनी चोटी से निकलती है तथा जिला कुल्लू के लारजी नामक स्थान के पास यह व्यास नदी में मिलती है।
तीर्थन नदी : तीर्थन नदी पीर पंजाल श्रेणी में से निकलती है तथा लारजी के पास यह ब्यास नदी में मिल जाती है।
मंडी जिले में व्यास नदी की सहायक नदियां :
ब्यास नदी कुल्लू जिले के बजौरा के पास मंडी जिले में प्रवेश करती है। इसके साथ ही मंडी जिले में अनेक खड्डे/ नदियां व्यास नदी में मिलती है।
जिउणी खड्ड: जिउणी खड्ड पण्डोह के पास व्यास नदी में मिलती है।
बाखली खड्ड : बाखली खड्ड पण्डोह के पास व्यास नदी में मिलती है।
ऊहल खड्ड : ऊहल खड्ड पण्डोह और मंडी के बीच व्यास नदी में मिलती है।
सुकेती खड्ड : मण्डी नगर के पास दक्षिण दिशा से बहकर आने वाली सुकेती खड्ड व्यास नदी में प्रवेश करती है।
बेकर खड्ड : बेकर खड्ड संधोल के पास व्यास नदी में मिलती है।
इसके अलावा मंडी जिले में थौला-पिंगला, सोन खड्ड आदि व्यास नदी में मिलती है।
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काँगड़ा और हमीरपुर जिलों में व्यास की सहायक नदियां :
बिनवा नदी : हारसी के निकट त्रिवेणी स्थान पर व्यास नदी और बिनवा का संगम होता है। मंडी से निकली सुन्न खड्ड बिनवा नदी में मिलती है। पूर्वकाल में सुन्न खड्ड सोना निकालने के लिए प्रसिद्ध रही है इसलिए सन्न खड्ड कहते हैं।
कुणाह खड्ड : नादौन से पहले कुणाह खड्ड व्यास नदी में मिलती है। कुणाह खड्ड हमीरपुर के बारहमासी खड्ड है इस खड्ड का उद्गम स्थल टौंणी देवी है। कुणाह खड्ड में गसोती, हथली, सुकर, सुकराला तथा अनेक छोटी खड्डे मिलती है।
मान खड्ड : मान खड्ड का उद्गम बड़सर तथा विलय नादौन के समीप व्यास नदी में हुआ है। मान खड्ड के किनारे कई ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है जिनमें प्रमुख है नादौन का ऐतिहासिक गुरुद्वारा, साईं फजल शाह की मजार तथा लवणेश्वर महादेव का मंदिर।
चक्की खड्ड : पठानकोट के पास चक्की खड्ड व्यास नदी में मिलती है। चक्की खड्ड जिला चम्बा के भटियात की ऊपरी पहाड़ियों से निकलती है। नूरपुर चक्की खड्ड के किनारे स्थित है।
बाणगंगा नदी : काँगड़ा जिले में बहने वाली बाणगंगा व्यास नदी में मिलती है।
गज खड्ड : गज्ज खड्ड पोंग झील के पास व्यास नदी में में मिलती है।
न्यूगल खड्ड : न्यूगल खड्ड भी व्यास नदी में मिलती है।
व्यास नदी पर बनी प्रमुख जल विद्युत परियोजनाएं :
ब्यास नदी और व्यास की सहायक नदियों में अनेक जल विद्युत परियोजनाएं प्रदेश की आर्थिकी को सुदृढ़ करने में बहुत योगदान दे रही है। इनमें प्रमुख परियोजनाएं है :- बस्सी परियोजना, गज परियोजना, बिनवा परियोजना, लारजी परियोजना, मलाणा परियोजना, शानन परियोजना, ऊहल परियोजना, सैंज परियोजना, पार्वती परियोजना आदि अनेक परियोजनाएं परियोजनाएं व्यास नदी और इसकी सहायक नदियों में चलाई जा रही है।
व्यास नदी के किनारे बसे शहर :
व्यास नदी के किनारे अनेकों शहर बसे है। व्यास नदी की बजह से उन शहरों का महत्व भो बढ़ जाता है। मनाली, कुल्लू, पण्डोह, मंडी, नादौन, सुजानपुर, देहरा गोपीपुर आदि शहर व्यास नदी के किनारे बसे है।
Beas River And It’s Tributaries | व्यास नदी और इसकी सहायक नदियाँ
व्यास नदी का उद्गम रोहतांग दर्रे के समीप व्यास कुण्ड से हुआ है।
सैंज, तीर्थन, पार्वती, ऊहल, सोन, बेकर, जिउनी, बिनबा,न्यूगल, बाणगंगा, गज खड्ड, चक्की, कुन्नाह, मान खड्ड, सुकेती खड्ड, सुन्न खड्ड, सोलंग नाला, पतलीकूहल आदि व्यास की सहायक नदियां/खड्डे हैं।
बजौरा के पास व्यास नदी कुल्लू से मंडी में प्रवेश करती है।
फोजल, सरवरी और हँसा जलधाराएं व्यास नदी की सहायक हैं।
व्यास नदी का वैदिक नाम अर्जिकिया है।
व्यास नदी का संस्कृत नाम विपाशा है।