History of Himachal Pradesh – lV
Important Questions for HPAS, NT, HP Allied Services
- ठाकुर कान्ह सिंह द्वारा लिखित पुस्तक “तारिख-ए-राजपूताना मुल्क-ए-पंजाब” का संबंध निम्नलिखित में से हिमाचल की कौन सी रियासत से है?
A) काँगड़ा
B) कुल्लू
C) सिरमौर
D) बिलासपुर
उतर-:D) बिलासपुर
व्याख्या:- ठाकुर कान्ह सिंह द्वारा लिखित पुस्तक “तारिख-ए-राजपूताना मुल्क-ए-पंजाब” का संबंध हिमाचल की बिलासपुर रियासत से है। इसमें 697 ईसवी से लेकर से लेकर वर्तमान समय तक बिलासपुर की स्थापना और राजाओं का कालक्रम बताया गया है। इसमें बताया गया है कि वीरचंद द्वारा बिलासपुर की स्थापना से पहले यहां छोटे-छोटे राणाओं और ठाकुरों का शासन था।
बिलासपुर के प्रमुख शासक तथा उनके काल की विशेष घटनाएं:-
बिलासपुर के राजा वीर चंद ने नैना धार में अपनी राजधानी स्थापित की और नैना देवी के मंदिर का निर्माण कार्य भी पूर्ण किया।
बिलासपुर के राजा अजीत चंद द्वारा हिंडूर रियासत की स्थापना की गई थी जिसे बाद में नालागढ़ के नाम से जाना गया।
बिलासपुर के राजा मेघ चंद ने कुल्लू के राजा के पास शरण लेने के बाद दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश की सहायता से अपनी राजगद्दी हासिल की थी।
बिलासपुर के राजा ज्ञानचंद ने सरहिंद के वॉयसराय के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म अपना लिया था। इनकी मृत्यु किरतपुर में हुई और यहीं पर इनका स्मारक बनवाया गया है।
बिलासपुर के राजा दीपचंद द्वारा वर्तमान बिलासपुर की स्थापना की गई थी। इन्होंने जनता के बीच राजा के लिए जय-देवा अभिवादन शुरू किया। इनके नादौन ठहराव के दौरान इन्हें कांगड़ा राजा द्वारा कैद भी रखा गया था। कुछ युद्ध अभियानों में इन्होंने मुगलों की भी सहायता की थी।
बिलासपुर के राजा भीम चंद का गुरु गोविंद सिंह से 1685 ईस्वी के करीब भंगानी नामक जगह पर युद्ध हुआ था।
बिलासपुर के राजा महान चंद के शासनकाल में कांगड़ा के राजा संसार चंद ने उन पर हमला किया और छातीपुर में किले की स्थापना की। इन्होंने गोरखा सरदार अमर सिंह थापा को संसार चंद पर आक्रमण करने का भी निमंत्रण दिया था।
बिलासपुर के राजा खड़क चंद को सबसे क्रूर शासक माना गया और उनके शासनकाल को काला अध्याय। इनकी मृत्यु चिकनगुनिया से हो गई थी और ये नि:संतान मर गए थे।
बिलासपुर के राजा हीराचंद के शासनकाल को बिलासपुर रियासत के स्वर्णिम इतिहास के रूप में जाना जाता है। इन्होंने कर व्यवस्था को कुछ फसल के रूप में वह कुछ नकदी के रूप में लेना तय किया।
बिलासपुर के राजा विजयचंद ने बिलासपुर में रंग महल की स्थापना की थी।
बिलासपुर के राजा आनंद चंद को भारत सरकार द्वारा आजादी के बाद बिलासपुर राज्य का मुख्य आयुक्त नियुक्त किया गया था।
वर्ष 1966 में बिलासपुर में NCC स्थापना की गई।
- चंबा के राजा उमेध सिंह से संबंधित निम्न तथ्यों पर विचार करें
1.इन्होंने चंबा में रंग महल की स्थापना की।
2.इन्होंने आदेश पारित किया कि कोई भी रानी उनकी चीता पर सती नहीं होगी।
3.उपरोक्त में से कौन सा/से कथन सत्य है/हैं?
A) केवल 1
B) केवल 2
C) 1 और 2 दोनो
D) न तो 1 और न तो 2
उतर-:C) 1 और 2 दोनो
व्याख्या:- उपर्युक्त दोनों कथन सत्य है। चंबा में सति न होने का आदेश तथा रंग महल की स्थापना दोनों ही कार्य उमेध सिंह द्वारा किए गए थे। चंबा के अधिकतर राजा कला एवं संस्कृति प्रेमी थे उमेध सिंह भी उनमें से एक था। उनकी अन्य प्रमुख उपलब्धियां निम्न थी:-
चंबा में कढ़ाई परंपरा की शुरुआत जिससे आगे चलकर चंबा रुमाल का जन्म हुआ।
उदय सिंह के बाद उमेध सिंह व इनके बेटे राज सिंह ने चित्रकाल को बढ़ावा दिया।
चंबा में अखंड चंडी पैलेस का निर्माण किया।
चंबा के प्रमुख शासक तथा उनके काल की विशेष घटनाएं:-
चंबा के शासक राम के पुत्र कुश के वंशज माने जाते हैं।
चंबा राज्य की स्थापना मारू द्वारा की गई माना जाता है। उनके सबसे छोटे बेटे मेरु ने 500 ईसवी के करीब भरमौर कस्बे की स्थापना की थी।
620 ईसवी के करीब चंबा का राजा आदित्य वर्मन अपने नाम के साथ वर्मन लगाने वाला पहला शासक था।
680 ईसवी के करीब चंबा के राजा मेरु वर्मन द्वारा मणिमहेश, लक्ष्णा देवी, गणेश और नरसिंह मंदिरों का निर्माण करवाया गया। गुगा इनके समय का प्रसिद्ध वास्तुकार था।
लक्ष्मी वर्मन के समय चंबा में कीरो का आक्रमण हुआ।
चंबा के राजा मुशान वर्मन का जन्म गुफा में, तथा पालन पोषण सुकेत में और चूहों को मारना उसके शासनकाल में निषेध था।
साहिल वर्मन ने राजधानी भरमौर से चंबा बदली और अपनी बेटी चंपावती के नाम पर चंबा शहर का नाम रखा। इनकी रानी नैना देवी ने बलौटा नामक स्थान पर पानी प्राप्ति के लिए बलिदान दे दिया था। इसी रानी की याद में सूही मेला चंबा में मनाया जाता है जिसमें बच्चे और महिलाएं भाग लेती हैं। इन्होंने चंबा में लक्ष्मी नारायण, और कामेश्वर मंदिर का भी निर्माण करवाया।
विजय वर्मन के समय चंबा राज्य की सीमाएं कश्मीर तक विस्तारित की गई।
चंबा के लोह-टिकरी जगह से जसाटा वर्मन के समय का शिलालेख मिला है।
गणेश वर्मन ने गणेशगढ़ किले का निर्माण करवाया था।
चंबा का राजा प्रताप सिंह वर्मन अकबर का समकालीन था और इसके समय में चंबा का भूमि बंदोबस्त टोडरमल द्वारा किया गया था।
बालभद्र वर्मन अपनी उदारता के कारण वाली करण के नाम से जाना जाता था।
पृथ्वी सिंह वर्मन के समय चंबा रियासत के कुल देवता रघुवीर की मूर्ति चंबा स्थापित की गई थी पृथ्वी सिंह शाहजहां के बड़े अच्छे मित्र थे।
चतर सिंह के समय मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा चंबा में सारे हिंदू मंदिर गिराने का आदेश दिया गया था लेकिन इन्होंने आदेश मानने से मना कर दिया था।
चंबा के राजा उदय सिंह ने नाई का कार्य करने वाले एक व्यक्ति को वजीर के पद पर बिठा दिया था और उनकी बेटी को अपनी प्रेमिका बना लिया था।
चंबा के राजा उग्रसेन को जम्मू के राजा ध्रुव देव द्वारा राजगदी पर बिठाया गया था।
चंबा के राजा राज सिंह की शाहपुर के युद्ध में संसार चंद के हाथों मृत्यु हो गई थी। इन्होंने राज्य में चित्रकारी को भी प्रोत्साहित किया था।निक्का इनके कोर्ट का प्रसिद्ध चित्रकार था।
चंबा की रानी शारदा ने चंबा में राधा-कृष्ण मंदिर बनवाया था।
जनरल कनिंघम राज्य के ऐतिहासिक अवशेषों को एकत्रित और अध्ययन करने वाला प्रथम यूरोपियन व्यक्ति था।
चंबा में लक्कड़ शाही सिक्के की शुरुआत श्री सिंह द्वारा की गई थी।
जब अंग्रेजो और जम्मू के महाराजा गुलाब सिंह के बीच संधि के दौरान चंबा जम्मू को सौंपा जा रहा था तो चंबा के वजीर बागा की भूमिका से इसे संधि में शामिल होने से रोक दिया गया। इसमें सर हेनरी लारेंस ने मध्यस्थता की थी।
श्री सिंह के शासनकाल के दौरान चंबा सीधे अंग्रेजों के अधिपत्य में आ गया था और इनके शासनकाल में मेजर ब्लेयर को चंबा का अधीक्षक नियुक्त किया गया था। इनके ही शासनकाल में तारागढ़, गणेशगढ़ और प्रतिहारगढ़ के किले चंबा में बनाए गए थे।इनके ही शासनकाल में 1863 में चंबा में प्रथम बार डाकघर खोला गया था। इनके ही शासनकाल में चंबा के सारे वन अंग्रेजों को 99 वर्षों के लिए पट्टे पर दे दिए गए थे।
चंबा के राजा मियां सुचित सिंह की लंदन में मृत्यु हुई थी।
1877 के दिल्ली दरबार में चंबा के राजा श्याम सिंह ने भाग लिया था। इन्होंने चौड़ी पास से खजियार तक सड़क निर्माण कार्य भी करवाया था था और तिसा में डिस्पेंसरी तथा चंबा में श्याम सिंह अस्पताल भी इनके शासनकाल में खोला गया था।
1900 ईसवी में लॉर्ड कर्जन और उनकी पत्नी चंबा की यात्रा पर आए थे।
चंबा के राजा भूरी सिंह को अंग्रेजों द्वारा 1906 में नाइटहुड की उपाधि दी गई थी। भूरी सिंह द्वारा ही चंबा में 1908 में भूरी सिंह संग्रहालय की स्थापना की गई थी।
इन्होंने चंबा में साल नदी पर 1910 में पावर हाउस का भी निर्माण करवाया था। 1911 में दिल्ली दरबार में भी भाग लिया था। इन्होने चंबा कस्बे में एक चौड़ी सड़क का भी निर्माण करवाया था और श्री सिंह के शासनकाल में 99 वर्षों के लिए पट्टे पर दिए गए सारे वनों को भी वापिस लिया था। इन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की सहायता भी की थी तथा आगरा में अफगानिस्तान के अमीर से भी मुलाकात की थी।
राजा लक्ष्मण सिंह चंबा का अंतिम राजा था।
- चंबा के भरमौर में स्थित चौरासी मंदिर के संबंध में निम्न तथ्यों पर विचार करें
1.इनका निर्माण 84 योगियों की स्मृति में करवाया गया था जिनका प्रमुख चरपट नाथ था
2.ये 84 छोटे-छोटे मंदिरों का समूह है।
3.उपरोक्त में से कौन सा/से कथन सत्य है/हैं?
A) केवल 1
B) केवल 2
C) 1 और 2 दोनो
D) न तो 1 और न तो 2
उतर-:C) 1 और 2 दोनो
व्याख्या:- उपर्युक्त दोनों कथन सत्य है। चंबा का चौरासी मंदिर 84 योगियों की समृति में साहिल और उनके बेटे युगांकर वर्मन द्वारा बनाए गए थे। ये 84 छोटे- छोटे मंदिरों का समूह है।
- हमीरपुर के किस स्थान पर मंडी के राजा ईश्वरी सेन को कांगड़ा के राजा संसार चंद द्वारा 12 वर्षों के लिए कैद रखा गया था?
A) सुजानपुर टिहरा
B) नादौन
C) महल मोरिया
D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उतर-:B) नादौन
व्याख्या:- मंडी के राजा ईश्वरी सेन को कांगड़ा के राजा संसार चंद द्वारा 12 वर्षों के लिए नादौन में कैद रखा था।
सुजानपुर टीहरा को संसार चंद-II द्वारा अपने राजधानी के रूप में विकसित किया गया था।
महल मोरिया में संसार चंद और गोरखो के बीच युद्ध हुआ था।
हमीरपुर का नाम कांगड़ा रियासत के शासक हमीरचंद के नाम पर पड़ा माना जाता है।
- निम्नलिखित में से सुजानपुर का कौन सा मंदिर भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है?
A) मुरली मनोहर मंदिर
B) नर्मदेश्वर मंदिर
C) महादेव मंदिर
D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उतर-:B) नर्मदेश्वर मंदिर
व्याख्या:-उपर्युक्त सभी मंदिर सुजानपुर में स्थित है। इनमें से सुजानपुर टीहरा का नर्मदेश्वर मंदिर भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
- अफगानिस्तान के निष्कासित अमिर शाह शुजा की सहायता करने के जुर्म में नूरपुर के किस राजा को महाराजा रणजीत सिंह द्वारा गोविंदगढ़ किले में 7 साल के लिये कैद कर दिया दिया गया था?
A)जगत सिंह
B)भक्त मल
C)बास देव
D)वीर सिंह
उतर-:D)वीर सिंह
व्याख्या:- अफगानिस्तान के निष्कासित अमिर शाह शुजा की सहायता करने के जुर्म में नूरपुर के राजा वीर सिंह को गोविंदगढ़ किले में 7 साल के लिये महाराजा रणजीत सिंह द्वारा कैद कर दिया दिया गया था। जिसे बाद में चंबा के राजा द्वारा पैसे देकर छुड़ाया गया था।
- कश्मीर रियासत के पूर्व प्रधानमंत्री व भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मेहर चंद महाजन का संबंध निम्न में से हिमाचल के किस जिले से था?
A)कांगड़ा
B)कुल्लू
C)मंडी
D)सिरमौर
उतर-:A)कांगड़ा
व्याख्या:- जस्टिस मेहर चंद महाजन का जन्म हिमाचल के टिक्का नगरोटा, जिला कांगड़ा में हुआ था। इनको इनके जन्म के समय पिता के लिए अशुभ माना गया था और इनका पिता द्वारा त्याग कर दिया गया था। लेकिन बाद में पिता द्वारा इस संबंध में ज्योतिषियों से फिर से विचार करने को कहा गया तो उन्होंने बताया कि यह लड़का परिवार के लिए बहुत ही भाग्यशाली है। तत्पश्चात इन्हें फिर से कांगड़ा लाया गया और इनकी पढ़ाई आर्य स्कूल धर्मशाला से हुई। लाहौर से 1905 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद इन्हें कश्मीर का प्रधानमंत्री बनाया गया। 1948 में इन्हे बीकानेर राज्य का संवैधानिक सलाहकार भी बनाया गया। 1954 इन्हे भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। “लुकिंग बैक” इनकी आत्मकथा का नाम है।
- निम्न में से कांगड़ा रियासत के किस शासक ने पिता को मृत समझकर अकबर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था?
A)जयचंद
B)बिधि चंद
C)त्रिलोकचंद
D)संसार चंद
उतर-:B)बिधि चंद
व्याख्या:- जयचंद की गिरफ्तारी के बाद उनके बेटे बिधि चंद ने त्रिगर्त का शासन संभाला। पिता को मृत समझकर इन्होंने कश्मीर तक के सभी पहाड़ी राजाओं को एकत्रित कर अकबर के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। लेकिन प्रतापी मुगल शासकों के आगे कहां ये छोटे राज्य टिक पाते।विधि चंद को हार का सामना करना पड़ा और अकबर से माफी मांगनी पड़ी। बदले में जमानत के तौर पर अपने बेटे त्रिलोकचंद को अकबर के दरबार में मुगल शासकों की सेवा में छोड़ना पड़ा।
- प्राचीन काल से किन्नौर और तिब्बत के बीच चला आ रहा व्यापार किस वर्ष भारत सरकार द्वारा पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया था?
A)1947
B)1954
C)1960
D)1962
उतर-:D)1962
व्याख्या:- किन्नौर में हंगरंग घाटी और इसके साथ लगते अन्य गांव तिब्बत से मिलती जुलती भाषा का इस्तेमाल करते थे और इनके तिब्बत के सीमावर्ती क्षेत्रों से लगते गांव से व्यापारिक संबंध थे। जो बाद में किनौर के निचले क्षेत्रों सांगला और रामपुर क्षेत्रों में भी स्थापित हुए।सीमा पर व्यापार की कोई पाबंदी नहीं थी इसलिए सांगला और रामपुर बुशहर से उत्पादों को रामपुर में बेचा जाने लगा। इसी कारण तिब्बत और किनौर के बीच एक व्यापारिक मेले के रूप में रामपुर लवी की शुरुआत हुई जो आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। लेकिन वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय सीमा को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया। इसके साथ ही व्यापार का सदियों से चला आ रहा क्रम भी समाप्त हो गया।
- निम्नलिखित में से किसे वॉइसरीगल लॉज का वास्तुकार नियुक्त किया गया था?
A) हेनरी इरविन
B) कैप्टन कोल
C) उपयुक्त दोनों
D) इनमें से कोई भी नहीं
उतर-:C) उपयुक्त दोनों
व्याख्या:- वॉइसरीगल लॉज के निर्माण कार्य के लिए प्रमुख वास्तुकार के रूप में कैप्टन कोल को नियुक्त किया गया था लेकिन कुछ प्रशासनिक कारणों से बाद में उनके स्थान पर हेनरी इरविन को यह कार्य सौंपा गया और उन्हीं के वास्तुकारिता और निर्देशों के अनुसार इसका कार्य संपूर्ण हुआ।
वॉइसरीगल लॉज से पहले पिटरहाफ़ वॉइसराय का आवास हुआ करता था जिससे लॉर्ड लिटन खुश नहीं थे। इसलिए इन्होंने 1877 में ऑब्जर्वेटरी हील्स के केंद्र में वॉइसरीगल लॉज बनाने का फैसला किया। उनका कार्यकाल समाप्त होने तक इसका कार्य पूर्ण नहीं हो सका। उनके बाद आए लॉर्ड रिपन और डफरिन ने इसे पूरा करने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई लेकिन बाद में लॉर्ड डफरिन के समय 1885 में इसका काम शुरू हुआ और 1888 तक इसे पूर्ण कर लिया गया।
तत्पश्चात आजादी तक यह वॉइसराय का निवास स्थान रहा। ब्रिटिश काल के दौरान यहां कई महत्वपूर्ण वार्ताएं हुई और कई महत्वपूर्ण समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए गए।आजादी के बाद यह भारत के राष्ट्रपति का आवास भी रहा। वर्तमान में यंहा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान स्थापित किया गया है।
- कुल्लू के राजा रूद्र पाल के समय लाहौल स्पीति के किस राजा ने कुल्लू पर आक्रमण किया और इसे अपने नियंत्रण में लिया?
A)समुद्र सेन
B)राजेंद्र सेन
C)चेत सेन
D)रंजीत सेन
उतर-:B)राजेंद्र सेन
व्याख्या:- 635 ह्युन सॉन्ग में कुल्लू की यात्रा की और यह भी पाया कि लाहौल एक देश के रूप में कुल्लू के साथ लगता है। स्पिती के राजा सेन वंश से संबंधित थे। इसके सबसे पहले शासक समुद्र सेन हुए तथा राजेंद्र सेन के समय में कुल्लू स्पीति की कर्द बनी और इसे स्पीति द्वारा अपने नियंत्रण में कुछ समय के लिए लिया गया। स्पीति का पतन चेत सेन के समय में शुरू हुआ और 17वी सदी में इसे लदाख द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में लिया गया। तत्पश्चात कुल्लू के राजा विधि सिंह द्वारा करीब 1670-80 के बीच इसे लदाख से आजाद करवाया गया तथा इसे अपने अधिकार क्षेत्र में लिया गया क्योंकि कुल्लू भी 1125 से लद्दाख की करद बन हुई थी।
- निम्नलिखित में से मंडी के किस राजा ने चांदी की माधव राय की मूर्ति हासिल की और इसे राजपाट सौंपकर राजपाट से त्याग दिया था?
A)सूरज सेन
B)ईस्वरी सेन
C)सिध सेन
D)श्याम सेन
उतर-:A)सूरज सेन
व्याख्या:- सूरज सेन मंडी का एक प्रतापी शासक था। इसके समय में कुल्लू के राजा सिद्ध सिंह का मंडी पर कई बार आक्रमण हुआ और नमक की खानों पर भी कुल्लू के राजा द्वारा कब्जा कर लिया गया।इनके 18 बेटे हुए लेकिन सभी की एक-एक करके मृत्यु हो गई इस घटना से क्षुब्ध होकर सूरज सेन ने राजपाठ माधो-राव को सौंप कर खुद राजपाट का त्याग कर दिया। इसी घटना के बाद सूरज से ने मंडी में आज के अंतर्राष्ट्रीय उत्सव शिवरात्रि की विधिवत शुरुआत भी की थी। माधो-राव की यह मूर्ति भीमा सुनार द्वारा बनाई गई थी आज भी इस चांदी की प्रतिमा को शिवरात्रि तथा अन्य प्रसिद्ध त्योहारों में शोभायात्रा के साथ निकाला जाता है।
मंडी में कमलागढ़ किला तथा दमदमा महल का निर्माण भी सूरज सेन द्वारा करवाया गया था। इनकी एक ही बेटी थी जिनका विवाह जम्मू के राजा हरिदेव के साथ करवाया गया था।
श्याम सेन सूरज सेन का भाई था। ये 1658 के आसपास के राज गद्दी पर बैठे। इन्होंने बाहरी राज्यों की यात्राएं की जिसमें नेपाल, बनारस और जगन्नाथ शामिल आदि शामिल थे। इन्होंने दूजंगढ़ के क्षेत्र को कुल्लू रियासत से अपने राज्य में मिलाया तथा लोहारा को सुकेत से छीनकर अपने राज्य में मिलाया। इन्होंने मंडी में धार टारना पर श्यामा काली मंदिर का भी निर्माण किया करवाया तथा व्यास नदी पर एक टैंक का भी निर्माण करवाया।
सिद्ध सेन मंडी का सबसे शक्तिशाली शासक हुआ। ये 1688 ईस्वी के आसपास राजगद्दी पर बैठे। इनके शासनकाल में गुरु गोविंद सिंह ने मंडी की यात्रा की। इन्होंने गुरु जी का आदर भाव से स्वागत किया। इन्होंने मंडी और कांगड़ा की सीमा के साथ लगते कुछ क्षेत्रों को हमिर चंद कटोच से छीनकर अपने राज्य में मिलाया तथा 1695 ईस्वी के आसपास सरखपुर किला और मंडी में गणेश मंदिर का निर्माण करवाया जिसे आज त्रिलोकीनाथ मंदिर के नाम से जानते हैं। इनका बेटा जौला सेन इनके शासनकाल में ही मर गया था इसलिए इनकी मृत्यु के बाद इनका पोता शमशेर सेन राजगद्दी का वारिस बना।
ईश्वरी सेन केवल 5 वर्ष की आयु में ही 1779 इसवी के आसपास राजगद्दी पर बैठा। इस अवसर का फायदा उठाकर कांगड़ा के राजा संसार चंद द्वितीय ने मंडी पर आक्रमण किया और ईश्वरी सेन को नादौन जेल में 12 साल के लिए कैद कर दिया। इन्हें बिलासपुर के राजा महान चंद के बुलावे के बाद गोरखों द्वारा जेल से आजाद करवाया गया। जेल से छूटने के बाद इन्हे सिखों को तीस हज़ार का वार्षिक नजराना सरदार देसा सिंह मिझिटिया की अध्यक्षता में देना पड़ा।यह 1815 तक बना रहा। इन्होंने बुशहर और नागपुर के राजाओं को भी शरण दी थी।
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