History of Bilaspur HP [Rulers of Bilaspur]
बिलासपुर पहले कहलूर राज्य के नाम से जाना जाता था। बिलासपुर पास्ट एण्ड प्रेजेंट ,बिलासपुर गैज़ेटियर और गणेश सिंह की पुस्तक चन्द्रवंश विलास और ‘शशिवंश विनोद’ के अनुसार कहलूर राज्य की नींव सम्वत 754 अर्थात 697 ई. में बीरचंद ने रखी थी। बीरचंद का शासनकाल सन 697 से 730 ई. था। जबकि डॉ हचिसन एण्ड वोगल की पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ़ पंजाब हिल स्टेट’ के अनुसार बीरचंद ने 900 ई. में कहलूर रियासत की स्थापना की।
बीरचंद चंदेल बुंदेलखंड (मध्य प्रदेश) चंदेरी के चंदेल राजपूत थे। बीरचंद के पिता हरिचंद के पांच पुत्र थे – गोविन्द चंद, वीर चंद, गम्भीर चंद, कबीर चंद तथा सबीर चंद। वीरचंद ने अपने 33 वर्ष के कार्यकाल में कई राज्यों को जीता। उसने राज्य में स्थित सात धारों में से एक पर नैणा गुज्जर के आग्रह पर नैणा देवी’ का मंदिर वनवाया , जिसे अब नयना देवी धार के रूप में जाना जाता है।
राजा बीरचंद ने बारह ठकुराइयों (बाघल ,क्योंथल, कुनिहार, बेजा, धामी,जुब्बल, कुठाड़, भज्जी, महलोग, मांगल, बलसन,बघाट) को अपने नियंत्रण में किया। बीरचंद के बाद क्रम से ये निम्न राजा हुए :-
उधरण चंद, यशकरण चंद (जसकर्ण), मदन ब्रह्म चंद, अहल चंद, कहाल चंद, सलार चंद, मान चंद, सेन चंद, सुलखान चंद, काहन चंद, अजित चंद, गोकुल चंद, उदय चंद, गेन चंद,पृथ्वी चंद, सांगर चंद, मेघ चंद, देव’चंद’, अहिम चंद, अभिसंद चंद, सम्पूर्ण चंद, रतन चंद, नरेंद्र चंद, फतह चंद, पहाड़ चंद, राम चंद, उत्तम चंद, ज्ञान चंद, बिक्रम चंद, सुल्तान चंद, कल्याण चंद, तारा चंद, दीप चंद, भीम चंद, अजमेर चंद, देवी चंद, महान चंद, खड़क चंद, जगत चंद, हीरा चंद, अमर चंद, विजय चंद, आनंद चंद
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कहाल चंद :-
कहालचन्द ,राज्य का छठा उत्तराधिकारी था। कहाल चंद के चार पुत्र थे -अजीत चंद ,अजय चंद , तेग चंद तथा सुचेत चंद। कहालचन्द की मृत्यु के बाद चारों ने अपने अड़ोस पड़ोस के राज्यों पर आक्रमण किया तथा अपने अधिकार में कर लिया।
सांगर चंद :
सांगर चंद के सात पुत्रों में से सात नए राजपरिवारों का प्रादुर्भाव हुआ। ये थे -दरोल, झंडवाल ,संगवाल ,धाल , नांगलू , मेधरी तथा डोकली।
काहनचंद :
काहनचंद ने हिन्दुर के ब्राह्मण ठाकुर को पराजित करके अपने दूसरे पुत्र सुचेत चंद को वहां का राजा बनाया जो बाद में हिन्दुर -नालागढ़ नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसका बड़ा पुत्र अजीत चंद कहलूर की गद्दी पर बैठा।
मेघ चंद :
राजा मेघचन्द बड़ा निष्ठुर और अत्याचारी था। इससे सारी प्रजा बिगड़ गई। जनता ने इसे राज्य छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। तब उसने कुल्लू रियासत में शरण ली और इसके बाद इल्तुतमिश की सहायता से फिर से कहलूर की गद्दी पर बैठा।
अभिसंद चंद :
अभिसंद चंद सिकंदर लोदी का समकालीन था। उसने तातार खान को युद्ध में हराया था।
सम्पूर्ण चंद :
इसकी रानी काँगड़ा के राजा की बहन थी। ठटवाल और महलमोरिया को काँगड़ा के राजा को वापिस लौटाने के मामले में सम्पूर्ण चंद और उसके भाई के बीच लड़ाई हो गई। रत्न चंद ने अपने भाई को मार दिया और स्वयं राजा बन गया।
रत्न चंद :
रत्न चंद द्वारा बड़े भाई की हत्या के कार्य से काँगड़ा का राजा बहुत नाराज हो गया। उसने अपने बहनोई के मारे जाने का बदला चुकाने के उद्देश्य से कहलूर पर चढ़ाई कर दी। लेकिन रतनचंद ने बड़ी बीरता से उन्हें हरा दिया। दिल्ली के सुल्तान ने राजा रतनचंद को ‘खिल्लत ‘ के तौर पर सवा लाख रुपया और एक तलवार भेंट की थी।
नरेंद्र चंद :
रत्न चंद की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र नरेंद्र गद्दी पर बैठा। उसके छोटे भाई का नाम मियाँ मिट्ठू था।
ज्ञान चंद :
राजा ज्ञान चंद अकबर का समकालीन था। इसके शासनकाल में कहलूर रियासत मुगलों के अधीन आ गई। ज्ञान चंद ने सरहिंद के सूबेदार ‘अमीरचंद क़ासिम खान ‘ के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म अपना लिया था। बाद में कासिम खान ने अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया। ज्ञान चंद का मकबरा किरतपुर पंजाब में स्थित है। ज्ञानचंद के 3 बेटों में से 3 ने (रामा और भीमा ) ने इस्लाम धर्म तथा बीकचन्द ने हिन्दू धर्म को अपनाया।
विक्रम चंद (बीकचन्द) :
बिकचंद ने 1600 ई. के आसपास नैना देवी/कोट केहलूर से अपनी राजधानी बदलकर सुन्हाणी कर ली। उसकी दो रानियां थी। एक काँगड़ा के राजा त्रिलोक चंद की पुत्री और दूसरी बाघल से। काँगड़ा वाली रानी के पुत्र का नाम सुल्तान चंद था और बाघल वाली रानी के पुत्र का नाम केशव चंद था।
सुल्तान चंद :
विक्रम चंद के पश्चात् जब सुल्तान चंद गद्दी पर बैठा तो केशव चंद ने कहलूर पर चढ़ाई कर दी। लड़ाई में केशव चंद की जीत हुई। सुल्तान चंद भाग कर काँगड़ा चला गया और सात वर्ष तक वहीं रहा। बाद में दोनों भाई लड़ाई में घायल हो कर मर गए। केशव चंद का पुत्र नहीं था ,परन्तु सुल्तान चंद के एक पुत्र था जिसका नाम कल्याण चंद था।
कल्याण चंद :
कल्याण चंद ने हिंडुर की सीमा पर एक किला बनवाया। इससे दोनों राज्यों में द्वेष फ़ैल गया। दोनों राजाओं के बीच लड़ाई हुई , जिसमें हण्डूर के राजा नारायण चंद की मृत्यु हो गई। कल्याण चंद ने नालागढ़ पहुँच कर नारायण चंद के पुत्र का राज -तिलक किया। इससे प्रसन्न होकर नारायण चंद की रानी ने अपनी पुत्री का विवाह कल्याण चंद से किया। सुकेत का राजा श्यामसेन कल्याण चंद का समकालीन था। श्यामसेन की पुत्री का विवाह कल्याण चंद से हुआ था। बाद में सुकेत के राजा और कल्याण चंद के बीच लड़ाई हुई। जिसमे कल्याण चंद मारा गया। जिस स्थान पर राजा की मृत्यु हुई उसे आज भी ‘कल्याण चंद की दवारी ‘ के रूप में जाना जाता है।
तारा चंद :
कल्याण चंद के आठ पुत्रों में तारा चंद सबसे बड़ा था। इसने राजा बनने के पश्चात् हिन्दूर पर चढ़ाई करके महलोग तक का पहाड़ी प्रदेश जीत लिया और नालागढ़ के ऊपर अपने नाम से ‘तारागढ़ किला’ और तारा देवी का मंदिर ‘ बनवाया। शाहजहाँ ने 1645 ई. में कहलूर पर आक्रमण करने के लिए नजाबत खान को भेजा। उसने तारा चंद को बंदी बना लिया।
दीप चंद :
दीप चंद जब राजा बना तो वह अपनी राजधानी सुन्हाणी से बदलकर ब्यास गुफा के पास ब्यासपुर (बिलासपुर) में स्थानांतरित की। बिलासपुर शहर की स्थापना 1654 ई. में दीपचंद ने की। उसने बिलासपुर में ‘धौलरा ‘ नामक महल का निर्माण करवाया। दीप चंद के समय में औरंगजेब मुग़ल सम्राट था। औरंगजेब ने ‘अटक किले ‘ पर अधिकार करने पर खुश होकर राजा को पांच लाख रूपये की खिल्लत और राजा की पदवी प्रदान की। और उसे सनद भी प्रदान की। दीप चंद ने “राजा को जय देवा ” ” राणा को राम -राम ” और “मियाँ को जय-जय “जैसे अभिवादन प्रथा शुरू करवाई। राजा दीपचंद को “नादौन ” में 1667 ई. में काँगड़ा के राजा ने भोजन में विष देकर मरवा दिया।
भीम चंद :
भीम चंद जब गद्दी पर बैठा तो उस समय वह चौदह वर्ष का था। उसका चाचा मियाँ माणिक चंद राज्य का बजीर था। राजा भीमचंद 20 वर्षों तक गुरु गोविन्द सिंह के साथ परस्पर युद्ध में व्यस्त रहे। गुरु गोविन्द सिंह ने 1682 ई. में कहलूर की यात्रा की। राजा भीम चंद 1686 में भगानी साहिब के युद्ध में गुरु गोविन्द से पराजित हुआ था । दोनों के बीच 1682 ई., 1685 ई. , 1686 ई. और 1700 ई. में युद्ध हुआ। दोनों के बीच 1701 ई. में शांति संधि हुई। गुरु गोविन्द सिंह और भीमचंद ने 1687 ई. में नादौन में मुगलों की सेना को पराजित किया था। भीमचंद की 1712 ई. में मृत्यु हुई।
अजमेर चंद :
इसके भी गुरु गोविन्द सिंह के साथ कटु संबंध रहे। अजमेरचंद ने हण्डूर की सीमा पर “अजमेरगढ” किला बनवाया।
देवी चंद :
राजा देवी चंद ने हण्डूर रियासत के राजा मानचंद और उसके पुत्र की मृत्यु के बाद जनता के आग्रह पर स्वयं गद्दी पर न बैठकर गजे सिंह हण्डूरिया को राजा बनाया। देवीचंद ने 1751 ई. में घमण्ड चंद की युद्ध में सहायता की थी। देवीचंद नादिरशाह का समकालीन था। देवीचंद ने हण्डूर के राजा विजय सिंह को रामगढ़ दुर्ग दे दिया था। राजा देवीचंद ने ‘भीमई कोट’ का किला बनवाया।
महानचन्द :
बिलासपुर पर सबसे लम्बी अवधि तक (46 वर्षों ) महानचन्द ने शासन किया। राजा के नाबालिग होने के समय रामू बजीर ने प्रशासन पर नियंत्रण रखा। रामू बजीर की 1783 ई. में मृत्यु होने के बाद 1790 ई. तक 12 ठकुराइयों ने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली थी। संसार चंद ने 1795 ई. में बिलासपुर पर आक्रमण किया जिसमें सिरमौर के राजा धर्म प्रकाश की मृत्यु हो गई। संसार चंद ने बिलासपुर के झांजियार धार पर छातीपुर किले का निर्माण करवाया। बिलासपुर के राजा महानचन्द ने 1803 ई. में गोरखों से सहयोग माँगा। जिसके बाद 1805 ई. में गोरखों ने संसार चंद को पराजित किया।
बिलासपुर 1803 ई. से 1814 .ई. तक गोरखों के अधीन रहा। ब्रिटिश जनरल डेविड ऑक्टरलोनी ने अमर सिंह थापा को बिलासपुर के रतनपुर किले में पराजित किया। 6 मार्च, 1815 को बिलासपुर ब्रिटिश सरकार के अधीन हो गया। 1819 ई. में देसा सिंह मजीठिया ने बिलासपुर पर आक्रमण किया। सन 1818 ई. में राजा ने संसारु बजीर को नौकरी से निकाल दिया। सन 1824 ई. में राजा महान चंद की मृत्यु हो गई।
खड़ग चंद :
खड़क चंद ग्यारह वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा। इस राजा का राज्य काल कहलूर -बिलासपुर के इतिहास में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तथा काला अध्याय समझा जाता है। सन 1832 ई. में संसारु वजीर की मृत्यु हो गई और इसके पश्चात् राज्य की स्थिति और भी विगड़ गई। 27 मार्च 1839 को खडग चंद की निसंतान मृत्यु हो गई। इसके शासन काल में जर्मन यात्री बैरन हेगल और अंग्रेज जी टी वीने बिलासपुर होते हुए गए थे।
जगत चंद :
खडग चंद की मृत्यु के बाद उसके चाचा जगत चंद को राजा बनाया गया। राजा जगत चंद के इकलौते पुत्र ‘नरपत चंद ‘ की 1844 में मृत्यु हो गई। उसके बाद राजा जगतचंद ने अपने पौते हीराचंद को गद्दी सौंप कर बृन्दावन चला गया। जहाँ 1857 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
हीराचंद :
जब हीरा चंद गद्दी पर बैठा तो उस समय राज्य का बजीर राजा जगत चंद का छोटा भाई मियाँ भंगी परगनिया था। 1857 ई. के विद्रोह में राजा हीरा चंद ने 500 सिपाहियों को भेज कर अंग्रेजों की सहायता की थी। हीराचंद के शासनकाल को बिलासपुर रियासत के इतिहास में स्वर्णकाल के नाम से जाना जाता है। हीराचंद ने सर्वप्रथम बिलासपुर में भू राजस्व सुधार किए। हीराचंद ने 1874 ई. में जगतखाना और स्वारघाट में टैंक का निर्माण करवाया। इस राजा के समय में “बसेह” और “बछरेटू” के लोगों ने विद्रोह किया जिसे बड़ी सख्ती से दबा दिया गया। राजा हीराचंद की 1882 ई. में नम्होल नामक स्थान पर मृत्यु हो गई।
अमरचंद :
राजा ने भूमिकर में बृद्धि कर दी थी। राज्य में बेगार प्रथा लागू थी। अमरचंद ने बेगार को बंद कर दिया और उसके स्थान पर लोगों से और 25 प्रतिशत कर वसूल करना आरम्भ कर दिया पनचक्की ( घराट) पर भी लगान लगाया गया। लोग अब जनता राजा से क्षुब्ध हो उठी। 1885 ई. तक स्थिति इतनी बिगड़ गई की “दुम्ह” का आयोजन होने लगा। राजा अमरचंद के शासनकाल में में बिलासपुर के गेहड़वीं में झुग्गा आंदोलन हुआ। अमरचंद ने 1885 ई. में रियासत के अभिलेख देवनागरी लिपि में रखने व कामकाज देवनागरी लिपि में करने के आदेश पारित किये।
विजय चंद :
विजय चंद का जन्म सन 1872 ई. में हुआ था। राजा विजय चंद ने कोर्ट फीस ज्युडिशियल स्टाम्प शुरू करने के अलावा बिलासपुर शहर में पानी की सप्लाई शुरू करवाई। राजा ने बहादुरपुर को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया। उनके शासनकाल में (1903) अमर सिंह बजीर थे। राजा विजयचन्द ने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों का साथ दिया। इसके बदले में अंग्रेजों ने K C I E तथा मेजर की मानद उपाधि प्रदान की। मियाँ दुर्गा सिंह नौ वर्षों (1909-1918) तक राज्य का बजीर रहा। उसके बाद इंद्र सिंह और हरदयाल सिंह बजीर बने। सन 1931 ई. में वाराणसी में राजा विजय चंद की मृत्यु हो गई।
आनंद चंद :
आनंद चंद को गद्दी पर बैठाने के लिए रेजिडेंट कमिश्नर स्वयं बिलासपुर पहुंचा। इस समय राजा की आयु केवल 15 वर्ष की थी। वह अजमेर के मेयो कॉलेज में पढ़ रहा था। आनंदचंद बिलासपुर रियासत के अंतिम शासक थे। राजा आनंद चंद बिलासपुर को भारत में विलय का विरोध करते थे और स्वतंत्र अस्तित्व के पक्षधर थे। बिलासपुर को 9 अक्तूबर ,1948 को ‘ग’ श्रेणी का राज्य और 12 अक्टूबर को आनंद चंद को बिलासपुर का पहला मुख्य आयुक्त बनाया गया। उनके बाद 2 अप्रैल 1949 को श्रीचंद छाबड़ा बिलासपुर के दूसरे मुख्य आयुक्त बने। बिलासपुर का 1 जुलाई ,1954 ई. को हिमाचल प्रदेश में 5वें जिले में विलय कर दिया गया। राजा आनंदचंद लोकसभा में निर्विरोध चुने गए। वह 1957 ई. में हिमाचल प्रदेश तथा 1964 ई. में बिहार से राज्य सभा के लिए चुने गए।
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