Hill States and their relations with the Sikhs
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पहाड़ी राज्यों के सिक्खों के साथ संबंध :
गुरु नानक देव द्वारा सोलवी सदी के प्रारंभ में सिख धर्म की स्थापना की गई। इसकी स्थापना के उपरांत सिख धर्म के 6 गुरुओं द्वारा इसके प्रचार व प्रसार की परंपरा को आगे बढ़ाया गया। इसका विस्तार पंजाब व वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब के साथ लगते इलाकों में हुआ। हिमाचल की अधिकतर रियासतों की सीमाएं पंजाब के साथ सटी होने के कारण सिख धर्म का प्रभाव हिमाचल में भी पड़ा। हिमाचल की पहाड़ी रियासतों से समय-समय पर सिख गुरुओं द्वारा कभी भूमि, तो कभी पैसा अनुदान स्वरुप मांगा जाता रहा। गुरु गोविंद सिंह और सिख शासक रणजीत सिंह के समय में हिमाचल के राजाओं और सिखों के रिश्तों में तल्खी भी बढ़ी। इसी बीच एक तरफ जहां दिल्ली में मुगल वंश की भी स्थापना हो चुका थी। वहीं दूसरी तरफ गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना कर मुगल सत्ता को चुनौती पैदा कर दी थी।पहाड़ी राज्यों के लिए भी यह एक विवाद का मुद्दा था कि वे सिखों की सत्ता को स्वीकारें या मुगलों की। महाराजा रणजीत सिंह के समय में एक तरफ जहां संसार चंद का प्रभुत्व कांगड़ा वह इसकी उप रियासतों पर कायम हो चुका था।वहीं दूसरी तरफ गोरखा आक्रमण की वजह से इन रियासतों पर रणजीत सिंह का प्रभुत्व बढ़ जाता है एवं संसार चंद का साम्राज्य पतन की ओर बढ़ना शुरू हो जाता है।
गुरु नानक देव (1469-1539) व पहाड़ी राज्य
- गुरु नानक देव सिख धर्म के पहले गुरु व इसके संस्थापक माने जाते हैं।इन्होने शांति और सौहार्द का संदेश दिया व पहाड़ी राज्यों की यात्रा भी की। इन्ही के समय में मुगल साम्राज्य की स्थापना भी हुई।
गुरु अर्जुन देव (1563-1606) तथा पहाड़ी राज्य
- गुरु अर्जुन देव सिक्खों के पांचवे गुरु हुए।इनकी प्रबल इच्छा अमृतसर में हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा बनाने की थी। इसके लिए इन्होंने पहाड़ी राज्यों की यात्रा की व मंडी, कुल्लू व अन्य कुछ पहाड़ी रियासतों से धन एकत्रित कर गुरुद्वारे के निर्माण में लगया।मंडी के राजा और कुल्लू के राजा इनके शिष्य बन गए थे।
गुरु हरगोविंद सिंह (1595-1644) तथा पहाड़ी राज्य
- गुरु हरगोबिंद सिंह सिक्खों के छठे गुरु हुए इन्होंने भी कई बार पहाड़ी राज्यों की यात्रा की।एक बार यात्रा से वापसी के दौरान कहलूर के राजा द्वारा गुरु को सतलुज के तराई वाले क्षेत्र में एक जमीन का टुकड़ा दान दिया गया था। इसी जमीन पर गुरुजी ने बाद में किरतपुर की स्थापना की।
गुरु तेग बहादुर (1621-1675) तथा पहाड़ी राज्य
- गुरु तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु हुए। एक बार कहलूर के राजा की मृत्यु पर शोक व्यक्त करने के लिए गुरु ने कहलूर की यात्रा की ।यात्रा के दौरान उन्होंने जमीन लेने की इच्छा प्रकट की। रानी ने इन्हें 3 गांव भेंट स्वरूप देने चाहे परंतु गुरु जी ने उसकी कीमत चुकाई और उसी दी गई जगह पर आनंदपुर साहब शहर विकसित किया। अंत में मुगलों द्वारा इन्हें फांसी दी गई।
गुरु गोविंद सिंह(1666-1708) तथा पहाडी राज्य
- गुरु गोविंद सिंह सिक्खों के दसवें गुरु हुए इन्होंने सिखो से आव्हान किया कि वे तोहफे के तौर पर इन्हें घोड़े और तलवार भेंट करें। जिसके पीछे मकसद मुगल सत्ता को समाप्त करना था। गुरुजी को असम के राय रतन सेन द्वारा तोहफे के तौर पर एक सफेद हाथी दिया गया था जो काफी समझदार व बुद्धिमान हाथी माना जाता था। राजा भीम चंद ने गुरुजी से हाथी की मांग की। मांग ठुकरा देने के बाद दोनों में विवाद बढ़ने लगा और दोनो के बीच 1686 ईस्वी में बागणी का युद्ध हुआ।
- सिरमौर के राजा मेदनी प्रकाश के समय में गुरु जी द्वारा सिरमौर की यात्रा की गई व राजा द्वारा गुरु जी को एक जगह भेंट स्वरुप दी गयी। इसी जगह गुरुजी द्वारा पौंटा साहिब नाम से गुरुद्वारा बनाया गया।
- मुगलों की भी दखल इसी बीच बढ़ रही थी।मंडी के राजा सिध सेन की नादौन युद्ध में मुगलों के विरुद्ध सिखों द्वारा सहायता की गई थी। इसलिए मुगल सिखों के कट्टर विरोधी हो गए थे।मुगलअलग-अलग सूबेदारोऔर सेना प्रमुखों के नेतृत्व में सेना भेज रहे थे लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ रहा था। हार इसलिए भी हो रही थी क्योंकि पहाड़ी राजा सिखों का साथ दे रहे थे।
- 1696 में मिर्जा बेग के नेतृत्व में औरंगजेब द्वारा पहाड़ी राज्यों को सबक सिखाने के लिए सेना भेज दी गई पहाड़ी राजाअपनी रियासतों में छुप गए और गुरु जी का साथ छोड़ दिया।
- गुरु जी ने 1699 मे खालसा पंथ की स्थापना करके सिखों से धर्म युद्ध में भाग लेने की बात कही जिससे 80,000 लोग सिख सेना में शामिल हो गये। इनकी सभी सैनिक गतिविधियां कहलूर राज्य के अधिकार क्षेत्र में की जा रही थी। इतनी बड़ी सेना के लिए एक ही स्थान पर खाना उपलब्ध करवा पाना मुश्किल था इसलिए गुरु जी ने निर्मोही में अपनी सेना स्थापित की। सिखो द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों में लूटपाट की जा रही थी और जबरदस्ती कर इकट्ठा किया जा रहा था। इसलिए पहाड़ी राजा इन से बहुत परेशान थे और इनकी सत्ता को उखाड़ फेंकना चाहते थे ।इसलिए 1703 में आनंदपुर साहिब में पहाड़ी राजाओं ने मुगलों के साथ मिलकर गुरु जी को हरा दिया लेकिन गुरुजी बच निकले और दक्षिण भारत चले गए। वहां ये बंदा बहादुर को अपना शिष्य बना लेते हैं और सिख सेना का नेतृत्व करने के लिए कहते हैं।
बंदा बहादुर (1716 तक) तथा पहाड़ी राज्य
- दक्षिण भारत से पंजाब में आकर सिख सेना को संगठित करता है और पंजाब के अनेक शहरों को लूटता है ।इसके पश्चात मुगल बादशाह द्वारा बंदा बहादुर को कुचलने के लिए सेना भेजी जाती है।बंदा बहादुर लोहगढ़ किले में घिर जाता है, तो वहां से भागकर ये नाहान मे शरण लेता है।सिरमौर के राजा ने इसे मुगलों को नहीं सौंपा इसलिए सिरमौर के राजा भूप प्रकाश को भी मुगलों द्वारा कैद कर दिया जाता है।
- नाहन से बचने के बाद बंदा बहादुर किरतपुर में सिख सेना को संगठित करता है और कहलूर पर आक्रमण करते है। वहअन्य पहाड़ी राज्यों को भी लूटने की कोशिश करते है। मंडी के राजा सिध सेन और चंबा के राजा स्वेच्छा से इनको कर देना स्वीकार करते हैं। अंत में 1715 में इनको पकड़ लिया जाता है मुगलों द्वारा और इन्हें फांसी दी जाती है।
12 मिसलें (1800 तक) तथा पहाड़ी राज्य
- बंदा बहादुर की मृत्यु के बाद सिख साम्राज्य 12 मिसलो मे बंट जाता है। जिसमें रामगढ़िया मिसल के जस्सा सिंह, कन्हैया मिसल के जय सिंह, शुक्रचकिया मिसल के महा सिंह का जिक्र हिमाचल के राजाओं के साथ आता है। अब तक मुगल साम्राज्य भी पतन की ओर बढ़ चुका था। इसलिए पंजाब में कोई बड़ी चुनौती शासकों के लिए नहीं थी।
- रामगढ़िया मिसल के जस्सा सिंह कई पहाड़ी राज्यों (काँगड़ा,नुरपर और चम्बा), पर आक्रमण करके इन्हे अपना करद बना लेता है। और कुछ को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लेता है। (जिसमें हरिपुर, जसवा और दातारपुर होते हैं)। इसी बीच अहमद शाह दुर्रानी का आक्रमण पंजाब से मुगल सत्ता का पूरी तरह अंत कर देता है और कांगड़ा के राजा घमंड चंद को जालंधर दोआब का निजाम नियुक्त कर सत्ता सौंप जाता है। इससे एक तरफ पहाड़ों पर घमंड चंद काफ़ी शक्ति मिल जाती है वहीं दूसरी तरफ मैदानो में सिख एक मजबूत शक्ति के रूप में उभरते हैं।
- कन्हैया मिसल के जय सिंह द्वारा रामगढ़िया मिसल के जस्सा सिंह को पराजित किया जाता है और कांगड़ा के बड़े सारे क्षेत्र इसके अधिकार में आ जाते हैं। इसी की सहायता से 1783 में संसार चंद द्वारा किला जीतने की कोशिश की जाती है और किला जीत भी लिया जाता है।लेकिन किले पर जय सिंह कन्हैया ही कब्जा कर लेता है।
महाराजा रणजीत सिंह(1801-1839) तथा पहाडी राज्य
- 12 मिसलें के बाद सिखों को संगठित कर महाराजा रणजीत सिंह एक मजबूत साम्राज्य स्थापित करते हैं।राज्य की सीमाओं का विस्तार करते हैं।इसी बीच कांगड़ा में महाराजा संसार चंद का भी शासन शुरू हो जाता है ।संसार चंद तथा महाराजा रणजीत सिंह दोनों अपना प्रभुत्व कयाम करने के लिए लगे हुए थेl इनकी आपसी लडाई में अधिकतर मैदानी क्षेत्र संसार चंद के हाथों से निकल जाते हैं।
- संसार चंद पहाडी राजाओं पर अपना अधिकार जमाने की कोशिश करता । जिसमें पहले वह चंम्बा के राजा राज सिंह को शाहपुर के युद्ध में हराता है। उसके बाद कहल्लूर के आजा महान चंद को हराता है, मंडी के राजा ईश्वरी सेन को कैद कर लेता है।
- कहलूर के राजा महान चंद द्वारा गोरखों को संसार चंद पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण भेजा जाता है। 1805 में सरदार अमर सिंह थापा 40,000 की सेना लेकर महल्मोरीया(हमीरपुर) के युध्द में संसार चंद को हरा देता है। संसार चंद खुद भागकर सुजानपुर टीहरा के किले में शरण लेता है और रंजीत सिंह से सहायता के लिए संदेश भेजता है। दोनों के बीच 1809 में ज्वालामुखी की संधि होती है संधि की शर्तों के अनुसार संसार चंद रणजीत सिंह को किला देने के लिए तैयार हो जाता है साथ में 66 गांव तथा कुछ वार्षिक हर्जाना भी देना मंजूर करता है। इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह द्वारा गुरुखो को भगा दिया जाता है उनको हार मिलती है। इसे किला रणजीत सिंह के कब्जे में आ जाता है और महाराजा रणजीत सिंह द्वारा देसा सिंह मिझिठीया को पहला सिख किलेदार नियुक्त किया जाता है।
- महाराजा रणजीत सिंह द्वारा कोटला का किला छीन लिया जाता है जो गुलेर के कब्जे में था। महाराजा द्वारा गुलेर रियासत का अधिकार क्षेत्र अपने हाथों में ले लिया जाता है। दातारपुर को अपना करद बनाया जाता है व सिबा को भी महाराजा द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में लिया जाता है।सभी पहाड़ी राजाओं को कर देने के लिए फरमान जारी किया। जिसमें कुलेहड और सिरमौर के राजाओं को विशेष रूप से लाहौर दरबार में आमंत्रित किया।
- 1823 में संसार चंद की मृत्यु के बाद उसके बेटे अनिरुद्ध चंद को ₹100000 के वार्षिक नजराने पर राजा बनने की अनुमति प्रदान की जाती है। लेकिन अपने मंत्री ध्यानचंद के बेटे के लिए अनिरुद्ध चंद की बहनों का हाथ मांगना इनके संबंधों को खराब कर देता है। अनिरुद्ध चंद पहले तो शादी के लिए हां कर देता है लेकिन बाद में मुकर जाता है और अपनी बहनों की शादी गढ़वाल के राजा के साथ करवा देता है।खुद रंजीत सिंह के गुस्से से बचने के लिए अर्की मैं शरण ले लेता है तथा अंग्रेजों से सहायता मांगता है ।अनिरुद्ध चंद के जाने के बाद रंजीत सिंह द्वारा इसके चाचा फतेह चंद को कांगड़ा का राजा बना दिया जाता है
- 1810 से लेकर कुल्लू सिखों को 40,000 कर के रुप में दे रहे हैं। लेकिन 1813 में कुल्लू के राजा विक्रम सिंह ने कर देने से मना कर दिया । इसके बाद मुखम्म सिंह के नेतृत्व में रणजीत सिंह द्वारा कुल्लू सेना भेजी जती है। राजा डर के मारे भाग जाता है और और सांगला में शरण लेता है। सिखों ने बहुत सारे क्षेत्रों में लूट करते हैं और बाद में राजा द्वारा माफ़ी मांग ली जाती है और ₹300000 सिखों को देकर फिर से शासन संभालते हैं।
- अफगानिस्तान के निष्कासित अमिर शाह शुजा की सहायता करने के जुर्म में नूरपुर के राजा वीर सिंह को गोविंदगढ़ किले में 7 साल के लिये कैद कर दिया जाता है। जिसे बाद में चंबा के राजा द्वारा पैसे देकर छुड़ाया जाता है।
खड़क सिंह (जून 1839- नवम्बर 1839) तथा पहाडी राज्य
- रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे खड़क सिंह सिख साम्राज्य की कमान संभाली जाती है। इनका छोटा सा शासनकाल रहता है।हिमाचल में किसी तरह का दखल इनके द्वार देखने को नहीं मिलता।
नौ-निहाल सिंह(नवम्बर -1839 नवम्बर 1840) तथा पहाडी राज्य
- खड़क सिंह की मृत्यु के बाद नौनिहाल सिंह द्वारा सिख राज्य की कमान संभाली जाती है और नौनिहाल सिंह द्वारा सिंधवाला सरदार के नेतृत्व में सेना कुल्लू भेजी जाती है ।कुल्लू के राजा अजीत सिंह पर हमला किया जाता है। इसमें सिराजी लोगों द्वारा अजीत सिंह को बचा लिया जाता है और बहुत सारे सिखों को भी मार दिया जाता है। लेकिन बाद में दोबारा सीख आर्मी जो सुल्तानपुर में स्थापित की गई होती है उनके द्वारा बहुत सारे सिराजी क्षेत्रों को लूटा जाता है और काफी हत्याएं भी की जाती है और इन क्षेत्रों को मंडी के अधिकार क्षेत्र में सौंप दिया जाता है।
- जनरल वेंचुरा के नेतृत्व में सेना कुल्लू, मंडी और सुकेत भेजी जाती है । कुल्लू मंडी और सुकेत के बहुत सारे क्षेत्रों को क्षति पहुंचाई जाती है और सिखों द्वारा इनको अपने अधिकार क्षेत्र में लिया जाता है।मंडी के राजा बलबीर सेन कोअमृतसर में कैद कर दिया जाता है।
महारानी चांद कौर(नवम्बर 1840-जनवरी 1841)
- पहाड़ी राज्यों मे दखल नहीं।
महाराजा शेर सिंह(जनवरी 1841-सितंबर 1843)
- मंडी के राजा बलबीर सिंह को आजाद कर दिया जाता है।
महाराजा दलीप सिंह(1843-1849)
- 9 मार्च 1846 को अंग्रेज सिख संधी के बाद हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्र अंग्रेजों के अधिकार क्षेत्र में आ गये।
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