त्रिगर्त : हिमाचल प्रदेश का प्राचीन जनपद
त्रिगर्त देश को पाणिनी ने आयुधजीवी संघ कहा है जिसका अर्थ होता है युद्ध के सहारे जीने वाले संघ । रावी ,व्यास और सतलुज इन तीन नदियों के बीच का प्रदेश त्रिगर्त कहलाता है। इसका पुराना नाम जालन्धरायण भी था ,जिसका राजन्यादिगण में उल्लेख हुआ है। वृहत्सहिंता तथा महाभारत में भी त्रिगर्त का जिक्र आता है। महाभारत के द्रोणपर्व अध्याय 282 में त्रिगर्त के राजा सुशर्म चंद्र और उसके भ्राताओं का वर्णन है। वे भाई है -सुशर्म-सुशर्मा ,सुरथि , सुधमी और सुबाहु।
त्रिगर्त का प्रथम राजा भूमि चंद था। वंशावली के अनुसार 231वां राजा सुशर्मा था ,जिसने कौरवों के पक्ष में लड़कर महाभारत युद्ध में भाग लिया था। सुशर्म चंद्र ने पांडवों को अज्ञातवास में शरण देने वाले मत्स्य राजा ‘विराट ‘ पर आक्रमण किया था जो कि उसका पड़ोसी राज्य था। सुशर्म चंद्र ने काँगड़ा किला बनाया था और नगरकोट को अपनी राजधानी बनाया।
पाणिनी ने त्रिगर्त नामक 6 संघ राज्यों के उल्लेख किया है- कोंडोरपथ , दाण्डिक ,जालमनी ,ब्राह्मगुप्त और जानकी ,जिन्हे उसने त्रिगर्त षष्ठ कहा है। पुन: आश्वमेधिक पर्व अध्याय 74 में त्रिगर्त के राजा सूर्यवर्मा का नाम मिलता है। इसी ने अर्जुन का घोड़ा रोका था। उसके दो भाई केतुवर्मा और धृतवर्मा थे। सभापर्व के अनुसार अन्य पर्वतीय राजाओं के साथ त्रिगर्त का राजा युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ में उपहार लेकर आया था। मार्कण्डेय तथा मत्स्य पुराणों में इसे पर्वतीय प्रदेश बताया गया है। विष्णु पुराण में इसका उल्लेख औदुंबरों और कुलूतों के साथ किया गया है। राजतरंगिणी में इसे काश्मीर के नजदीक बताया है।
त्रिगर्त राज्य ने ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में अपनी मुद्राएँ भी चलाई , जिससे पता चलता है कि उस समय यह एक स्वतंत्र जनपद था। मुद्राओं पर त्रिगर्त जनपद देश ‘ब्राह्मी लिपि ‘ में लिखा मिलता है। दूसरी ओर की लिपि ‘खरोष्ठी ‘है। ये मुद्राएँ चकोर थी।
त्रिगर्त का अर्थ है तीन नाले या तीन नदी घाटियां , अर्थात वह क्षेत्र जो तीन नदी घाटियों द्वारा बना हो। वैदिक तुत्सु क्षेत्र और बाद के त्रिगर्त के अंतर्गत एक ही क्षेत्र सिद्ध होता है, अर्थात रावी नदी से लेकर व्यास नदी-घाटी से होते हुए सतलुज नदी घाटी तक का क्षेत्र।
विष्णु पुराण में इसका उल्लेख औदुंबरों और कुलूतों के साथ किया गया है। राजतरंगिणी में इसे कश्मीर के नजदीक बताया गया। पाणिनी ने त्रिगर्त नामक 6 संघ राज्यों का उल्लेख किया है। कोंडोरपथ , दांडकी, क्रोष्टकी, जालमनि , ब्राह्यगुप्त , जानकि जिन्हे उसने त्रिगर्त षष्ठ कहा है।
यहाँ के लोग वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। त्रिगर्त राज्य ने ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में अपनी मुद्राएं भी चलाई , जिससे पता चलता है कि उस समय यह एक स्वतंत्र जनपद था। मुद्राओं पर त्रिगर्त जनपद देश ‘ब्राह्मी लिपि’ में लिखा मिलता है। दूसरी ओर की लिपि खरोष्ठी है। यह मुद्राएं चौकोर हैं।
त्रिगर्त : हिमाचल प्रदेश का प्राचीन जनपद
Read Also : हिमाचल प्रदेश का इतिहास
- HPU Shimla Latest Notifications -January 2025
- HP Police Constable Question Paper Held on 27 March 2022
- Jal Shakti Division Thanakalan Para Cook And Para Helper Recruitment 2025
- Jal Shakti Divison Palampur Para Cook And Para Helper Recruitment 2025
- HPPSC Shimla HPAS Exam 2024 Final Result